Getting My भाग्य Vs कर्म To Work
Getting My भाग्य Vs कर्म To Work
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पॉजिटिव थिंकिंग की अवधारणा इसी स्ट्रेस को कम करने के लिए आई
जमुईचाची ने की भतीजे से लव मैरिज, चुपचाप सामने खड़ा रहा पति, बोली- अब नया वाला ही...
क्या राम और कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार नहीं हैं?
ek story hai jab aambari namak ek hathi tha vh talab mai fas gaya usne bahot koshish ki uss kichad se bahar nikal ne ka but nahi nikla final mai usne bhagvan ko yad kiya bghvan ne uski madat ki, for the reason that god ne madat isliye kiya ki usne 1st test kiya and final mai bhagwan ko bulaya vahi same aapne bhagya and karm ka hota hai agr hum karm krenge to aapne nasib mai jo hai vh routinely mil Hello jayega means karm ka fal.
भगवान् के भरोसे मत बैठो….का पता…भगवान् तुम्हरे भरोसे बैठा हो?
हर साल लाखों युवा हीरो बनाने मुंबई जाते हैं, पर क्या हेमशा वही हीरो बनता है जो सबसे मेहनती होता है….
इसका सीधा – सादा उत्तर देना उतना ही कठिन है जितना की “पहले मुर्गी आई थी या अंडा “का
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पर हम किसी लगातार सफल व्यक्ति के ये गुण खुद में उतारने के स्थान पर लगेंगे भाग्य को दोष देने
मैंने ऐसे कई बच्चे देखे जिन्होंने तीन , चार साल मेडिकल या इंजिनीयरिंग की रोते हुए पढाई करने के बाद लाइन चेंज की
ज्योतिष तो समय और कर्म की ही बात करता है। ज्योतिष कहता है कि इस समय में ऐसे कर्म करो और भाग्य बदल जाएगा, मगर मैं तुम्हें लिखकर दे सकता हूं कि भाग्य नहीं बदल सकता।
हममें से कई लोग मानते हैं कि हमारे भाग्य भगवान द्वारा लिखे गए हैं या वे पहले से ही लिखे हुए हैं और उन्हें बदला नहीं जा सकता। लेकिन धार्मिक दृष्टिकोण से पहला सबक यह मिलता है कि हम भगवान के बच्चे हैं। और यदि यह सत्य है, तो हमारे लिए लिखे गए भाग्य समान और न्यायसंगत होने चाहिए। परंतु आज, हम समझते हैं कि लोगों के जीवन और उनके भाग्य न तो समान हैं और न ही परिपूर्ण। तो, हमारे भाग्य के लिए कौन जिम्मेदार है? हम खुद हैं।
पर ऐसा कहने वालों की भी कमी नहीं होती कि सफलता या असफलता इंसान के कर्म से निर्धारित होती है, यानी कर्म हमेशा भाग्य से बड़ा होता है.
सृष्टि में कोई भी व्यक्ति बिना कर्म किए नहीं रह सकता है। वह या तो विचारों के माध्यम से सक्रिय है अथवा क्रियाओं के माध्यम से या फिर कारण बन कर कर्म में योगदान कर रहा है। जीव-जंतु हों या मनुष्य, कोई भी अकर्मण्य नहीं है और न ही कभी रह सकता है। विद्वानों ने मुख्य रूप से तीन प्रकार के कर्म बताए हैं जिनमें एक होता है क्रियमाण कर्म, जिसका फल इसी जीवन में तुरंत प्राप्त हो जाता है। दूसरा संचित कर्म होता है, जिसका फल बाद में मिलता है। तीसरा होता है प्रारब्ध।
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